In continuation of tenth quality of Shri Ram समर्थ or काबिल (samarthaḥ = intelligent) Lot of thoughts came to my mind on what will be best example to demonstrate how to develop mastery (काबिल ) by dedication and loving our intuition to make tremendous efforts to achieve grand success. i didn’t find any other example than to share The story of Eklavya -एकलव्य. I am going to explain in English and Hindi . I also remember famous quote “
“Khudi ko kar buland itna ke har taqder se pehle
Khuda bande se khud pooche bata teri raza kya hai.
“Make yourself so able to such an extent that even before your destiny or fate is decided, the divine creator has to ask you, ” Child, what is it that you wish for“
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
इन खूबसूरत पंक्तियों से इक़बाल(Allama Iqbal)जी हमें यही बताने की कोशिश कर रहे हैं की खुद को इतना बुलंद करो मतलब इतनी मेहनत करो की किस्मत लिखने वाला खुदा या भगवान खुद आकार तुमसे पूछे की बता तेरी रज़ा क्या है मतलब तुझे क्या चाहिए| तो इस तरह हम अपनी मेहनत से खुद अपनी किस्मत लिख सकते हैं
Eklavya wanted to learn archery from approached Dronacharya for the same. However due to various reasons, Dronacharya refused to mentor him.
Eklavya returned home and made a statue of Dronacharya and started practicing on his own. The statue of Drona constantly reminded him of the heights he wished to achieve and propelled him to work hard.
Eklavya reached the pinnacle surpassing Arjun, Dronacharya’s beloved student whom he had promised to make the best in the world.
One day Arjun happened to meet Eklavya to realize that there are better archers than him in the world. Curious and perhaps a little disappointed, Arjun inquired Eklavya about his Guru. Eklavya took Arjun to the statue of Drona where he used to practice. This made Arjun envious who immediately ran to his master Drona and reminded him of his promise to make Arjuna the best in the world. Looks like Eklavya had better honors than being the best archer waiting for him.
Drona met Eklavya and assessed his skills that were certainly much superior to those of Arjun. Drona asked Eklavya to offer his right thumb as a Gurudakshina (gift/offering to the teacher), which Eklavya did without any hesitation. This ensured that Eklavya was unable practice
Archery for the rest of his life and Arjun remained the best archer in the world at that time. However, this also ensured that Eklavya’s fame remained unblemished throughout the world history. It established Eklavya as the most skilled archer in the history more skilled than Arjuna.
This incident also established Eklavya as an ideal student in the times to come. Arjun had the luxury of getting personal instructions from Dronacharya all the time while Eklavya only had the inspiration and determination with him. With just these two, he was able to surpass Arjun.
Story in Hindi
एकलव्य और द्रोणाचार्य की कहानी
एकलव्य एक गरीब शिकारी का पुत्र था। वह जंगल में हिरणों को बचाने के लिए तीरंदाजी सीखना चाहता था क्योंकि वे तेंदुए द्वारा शिकार किए जा रहे थे। इसलिए वह द्रोणाचार्य (उन्नत सैन्य कला के महागुरु) के पास गया और उन्हें तीरंदाजी सिखाने के लिए अनुरोध किया। द्रोणाचार्य शाही परिवार के शिक्षक थे।
उन दिनों में, एक नियम के अनुसार, शाही परिवार के सदस्यों को सिखाने वाले शिक्षकों को राज्य कला के विधियों को किसी और को सिखाने की अनुमति नहीं थी। इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए किसी के रूप में शक्तिशाली लोगों को शक्तिशाली बनाने के लिए मना किया गया था। इसी कारण गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपनी सैन्य कला को सिखाने से पूर्ण रुप से मना कर दिया। एकलव्य इस बात से थोड़ा दुखी हुआ।
परंतु अपने दिल में एकलव्य ने पहले ही द्रोणाचार्य को अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया था।वह घर चला गया और वहां उसने अपने गुरु द्रोणाचार्य की एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और जंगल के बीचो-बीच उस प्रतिमा को स्थापित करके वह छुप-छुपकर गुरु द्रोणाचार्य की सैन्य कलाओं को सीखने लगा। कुछ वर्षों के बाद, ईमानदारी और व्यवहार के साथ उसने तीरंदाजी सीखा और कला में राजकुमारों की तुलना से बेहतर बन गया। एकलव्य तीरंदाजी में इतना निपुण था कि वह आंखें बंद करके भी किसी भी जानवर की आवाज सुन कर उस पर कुछ ही पल में निशाना साध सकता था।
एक दिन अर्जुन को एकलव्य की इस असीम प्रतिमा के बारे में पता चला। अर्जुन ने देखा कि एकलव्य उनसे भी ज्यादा धनुष चलाने में निपुण है। एकलव्य की निपुणता को देखकर अर्जुन ने एकलव्य से प्रश्न पूछा -आपको किसने तीरंदाजी सिखाई? प्रश्न सुनते ही एकलव्य ने उत्तर दिया – मेरे गुरु द्रोणाचार्य जी ने।
यह सुनकर, अर्जुन बहुत आश्चर्यचकित हुआ और क्रोधित भी। अर्जुन द्रोणाचार्य के पास गया और गुस्से में कहा, ‘आपने ऐसा कैसे किया? आपने हमें धोखा दिया है। आपने जो किया वह अपराध हैआप मुझे केवल बेहतरीन तीरंदाजी सिखाना चाहते थे, लेकिन आपने एकलव्य को सिखाया और उसे मुझसे अधिक कुशल बनाया।
यह सुनकर द्रोणाचार्य उलझन में थे और भ्रमित भी। वह सोच में पड़ गए की ऐसा कौन सा छात्र है जो अर्जुन से अच्छा धनुर्धर है। द्रोणाचार्य इस बात का विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि वह बालक यानी कि एकलव्य अर्जुन से अच्छा धनुर्धर कैसे हो सकता है। तब द्रोणाचार्य और अर्जुन ने मिलकर उस लड़के से मिलने का फैसला किया और वहां उसके पास गए।
एकलव्य ने अपने गुरु को महान सम्मान और प्रेम के साथ स्वागत किया। उसके बाद एकलव्य अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य को जंगल में स्थित उस मिट्टी की मूर्ति के पास लेकर गया। उसने दोनों को द्रोणाचार्य के बनाये हुए मूर्ति को दिखाया। एकलव्य ने उनको सब बताया कैसे उसने द्रोणाचार्य से सभी विद्या सीखा। द्रोणाचार्य इस बात का हल निकाल नहीं पा रहे थे की अब वह क्या करें?
प्राचीन काल में, गुरु-छात्र में ज्ञान लेने के बाद एक सामान्य प्रथा थी- गुरु दक्षीना। जहां छात्र द्वारा प्राप्त ज्ञान के लिए विद्यार्थी व शिक्षक गुरु दक्षिणा दिया करते थे। द्रोणाचार्य ने कहा, ‘एकलव्य, अगर तुमने मेरे से यह शिक्षा प्राप्त की है तो तुम्हें मुझे गुरु दक्षिणा ज़रूर देना चाहिए। एकलव्य इस बात से खुश हुआ और उसने गुरु द्रोणाचार्य से पुचा आपको गुरु दक्षिणा में क्या चाहिए गुरु जी?
तब द्रोणाचार्य से उत्तर दिया – मुझे तुम्हारे दाहिने हाथ का अंगूठे दे दो। एकलव्य जानता था कि अंगूठे के बिना तीरंदाजी का अभ्यास नहीं किया जा सकता था। परन्तु तब भी एकलव्य ने अपने गुरु को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे को काट कर गुरु दक्षिणा दिया। इस प्रकार गुरु द्रोणाचार्य ने राजकुमारों को दिए हुए प्रण को पूरा किया और एकलव्य का उत्थान किया।
कहानी से शिक्षा और इसका महत्व Learning and Importance of this Story
इस कहानी में गुरु द्रोणाचार्य को आमतौर पर क्रूर और आत्म-केंद्रित माना जाता है। एकलव्य ने बिना किसी लोभ के अपनी मेहनत और लगन से अपने गुरु से दूर रहकर भी शिक्षा प्राप्त की। कहानी सुनने पर बहुत दुःख लगता है क्योंकि द्रोणाचार्य ने एकलव्य के साथ अन्याय किया परन्तु अगर हम देखें तो एकलव्य ने इतना बड़ा गुरुदाक्षिना दे कर शिष्यत्व का अर्थ पुरे दुनिया को समझाया और इसीलिए उन्हें ही सबसे पहले एक अच्छे शिष्य के नाम से याद किया जाता है जब भी कोई गुरु द्रोणाचार्य का नाम याद करता है।
Conclusion
Finally, it established Eklavya as an ideal human being to be emulated. When we talk of about Eklavya, no one else can ever take his place. He was interested in archery for the love of archery not for fame or his ego. When asked for his thumb, he happily gave it without even thinking twice. Such was his personal character!!
Its not only Eklavya but many more successful great people stories that demonstrate to become expert and transform through hard work convert dream into reality. It’s like everyone thinks to remain healthy by exercise /yoga etc. but very few on daily basis for many years able to achieve the result
Any professional degree to achieve the Rank yourself among the best and aspire to surpass the best.
Remember the famous movie maker Vidhu Vinod Chopra (maker of Munna Bhai movies, 3Idiots etc.). His father used to say “Galli ka mochi banna hai to bano, but become the best mochi.”
It doesn’t matter what you do, but you be the best. Is it easy to achieve best? off course not. Is it impossible? Surely not then what it is?
Lot of hard work, commitment and burning desire to MAKE IT HAPPEN. Build string courage require power from Hanuman ji blessing from Ram ji “Hamare Ram ji Ram Ram kahiloji Hanuman.
Moral: Any knowledge Teacher gives to Student has value in life of a Student as he goes on with life. Think from Kindergarten till highest level of study you have completed, see what you will be left with if there were no teachers in your life. Parents give us life, love and help in going right direction, But Teachers show us how to live life, shows us path and makes us self dependable so that we can pick the right path. Always respect your teachers, do not value them any lesser than your parents.
When student succeeds in studies and life, its student who always gets praised by People, not the one who gave student a knowledge to success. Teacher’s Happiness is in student’s success, and student should not forget to at least thank politely to the one who made you capable of following journey of life. And if you had learned what your teacher taught you with dedication and respect to towards teacher, journey of life always gets comfortable. Jai Shriram